बुधवार, 11 जनवरी 2012

मेरी जन्‍नत, मेरा मकां


तिनका तिनका जुटाया एक अदद आशियाने को,
धूप, बारिश ,सर्द हवाओं में सर छुपाने को,
मेरी जन्‍नत, मेरा मकां है थपेडों में,
थोडी सी और जगह है तुझे बुलाने को।
मौसम ए इश्‍क में जो आसमां साथ देता है,
तेरी बुलंदी पर ये जहां साथ देता है,
एक उंचाई जो छू लेते हो,
फिर तो पंखों को हवा भी साथ देता है।
गर बात इतनी सी होती जिंदगी के लिए,
हर भरोसे को मंजिल का पता मिल जाता।
जिसकी चाहत में उजाले भी साथ छोड जाए,
वैसी हर मुश्किल का पता मिल जाता।
सडक पर रोशनी जब रंग बदल जाती है,
आशियाने के कई रंग नजर आते हैं।
सडक से छतों के मुंडेरों तक,
जमाने के कई रंग नजर आते है ।
मेरी आदत है देखने की, पर रंगीन नही
शायद इसलिए मुझे हर रंग नजर आते हैं।
शहर के गिरहबां में झांको तो,
कई रंग  बदरंग नजर आते हैं।

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