रविवार, 8 जनवरी 2017

बारिश की बूंदे

बारिश की बूंदे महसूस नहीं होती
अब भींग जाता हूँ
डर बीमार होने का घर कर लेता है
या फिर दिखती है काम में बाधा

मिट्टी की सौंधी खुसबू
खपड़े पर बूंदों की थाप
रात भर आनेवाली मेढकों की टर्र टर्र आवाज
बहते पानी की धार पर कागज की नाव

जिन्दा है यादो में, हो गयी तरोताजा
पढ़कर मौसम विभाग का अनुमान
की हवा का रूख कुछ बदलेगा
ठंड में बारिश, पच्छिमी विछोभ से आएगी।

बारिश यथार्थ है लेकिन उसको महसूस करना
यादों के झरोखे पर टकटकी के जैसा है
कही इस बीच फ़ोन की घंटी बजी
तो स्वप्निल नींद का अनायास टूटना समझिये

बरसात में छाता और बस्ता एक दूसरे के साथी होते
लेकिन अपनी ख़ुशी तो इनके बिछुड़ने में है
तरबतर होने का वो एहसास कल मामूली था
लेकिन आज इंद्रधनुष के रंगो सा दिखता है।

मधुरेन्द्र

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