कभी कागज, कभी कश्ती, कभी पतवार बन जाएं
लहर कितनी भी ऊंची हो, संभलकर यार बढ़ जाये।
जिन्दा है, तो हर पल है चुनौति का खड़ा दरिया,
उसे हम पार कर जाएं, सफर में यार बढ़ जाएं।
तुम्हारी जीत में जो हाथ आसमा को छू लेंगे,
तुम्हारी हार में वो दामन चुराकर निकल लेंगे!
वो वक़्त की शह पे बदलते है फैसले,
हम लफ्ज़ की लय में बहने के कायल हैं।
किसे मालूम कल कौन देगा दस्तक बिना आहट?
कहा उम्मीद का होगा ठिकाना, किस करवट बैठेगी चाहत;
हवा का रूख किधर मुड़कर बस्ती जलाएगा,
की बूंदों की सरगम से मिलेगी धरती को राहत!
निश्चय निश्चल है, पलकों के झपकने सा
इस दरम्यान कई दृश्य पल में बदल जाये
जिसे पाया वही खोने की लय में है,
जिसे खोया उसे कैसे कहा पाएं!
जिंदगी की उधेड़बुन में चलो राहे तलाशे फिर,
ठहरकर मोड़ पर कुछ पल हमे फिर से चलना है।
जबतक सांस का है जिस्म के साथ एक रिश्ता,
जलाना है दिया और अंधेरे में उजाले भरना है।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें