बचपन की बारिश...
बचपन की बारिश ,बारिश का पानी
यादें सुनहरी, अमिट है कहानी,
भीगें बदन, पैर में गीली मिट्टी
झमाझम बरसता सावन खट्टी मीठी.
उस दौर में तो भीगना था मुक्कदर,
बहते पानी का नाला जैसे समंदर .
नाव कागज़ की लेकर उतर जाते थे,
जैसे सहराओं से गुजरता था सिकन्दर.
टपकती छत के नीचे बाल्टी रखकर,
सोते कानो में मेढकों की टर्र टर्र,
रात भीगी थी अरमान सूखे सूखे थे,
लेकिन बारिश से हम कभी न रूठे थे!
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