शहर के वीराने में कौन किसकी ख़बर रखता है?
जो रखता है वह जिस्म में ख़ून ए जिगर रखता है।
रूह जिन्दा है इसका सबूत है कैसे दे
किसी के दर्द में बस साथ खड़ा होकर देखें!
शहर के शोर में मुमकिन है कुछ कान बंद हो जाये,
कुछ आंख बंद हो जाए, कुछ मकान बंद हो जाए।
ऐसी आफत में भी जब हाँथ मदद को बढ़ते,
ऐसा लगता है कि भगवान प्रकट हो जाएं।
जिन्दगी का भरोसा क्या, एक साख पे लटका पत्ता है
कभी आंधी ,कभी बारिश तो कभी परिंदों के पर से लड़ता है
रोशन है सूरज के रहम ए रोशनी से
कब मिट्टी में मिल जाये, क्या भरोसा है।
तो फिर जिन्दा है तो जिंदगी की जय बोले
मेरी सांसे तेरी सांसो की हर लय बोले
अपनी हांथो में हूनर हो और दिल मे जज्बा
सबके चेहरे पे मुस्कान बनके हम डोले×2
मधुरेन्द्र

बहुत खूब...
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ऐसा लगता है कि भगवान प्रकट हो जाएं...'