प्रभावहीन.....
जीवन के शांत धरातल पर
सुबह की ओस,दोपहर की धूप,
शाम की शीतल हवा और रात की खामोशी,
अपने अपने हिस्से की ब्यथा छोड जाते है।
मेरा सीना ओढ लेता है कर्इ बार,
कोहरे की चादर, जैसे छायें हो घने बादल,
बारिश की बूंदो से दिल की जलन को भले ही आराम मिले,
तेरी यादों की घनेरी छावों मे भी भीग जाता हूं तरबतर।
एक अहसास, फूटती है सीने के गर्भ से,
जिसके कोमल कपोलो पर मुस्कान बिखरी है,
तेरे मेरे होने की पहचान बिखरी है,
गुमनामी के अंधेरे से उजाले की ओर...
समय के शेष हिस्से मे उडान भरना है,
अनन्त के ब्यास मे गतिशील,
क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया से
प्रभावहीन, दिशामुक्त, विरक्त,
की रह ना जाये शेष मेरे सीने मे बदलते समय की ब्यथा।

ummada , jivant..
जवाब देंहटाएंthebhumihar.blogspot.com
Thx punit..
जवाब देंहटाएंThx punit..
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