मौजूदा हालात पर मेरी यह कविता...
जब वर्दी में ही गुंडे हो,
खाकी में खड़े लफंगे हो,
कानून है इनकी जूती में,
जोर जुल्म मजबूती में,
तो कौन न्याय की ढाल बने
फिर कौन मुक्त महसूस करे
हर तरफ बेड़िया, हंटर है
जब पुलिस के हाँथ ही खंजर है,
लोकतंत्र खड़ा है कोमा में
अराजकता की सीमा में,
आजादी प्रेस की कैद हुई
अभिव्यक्ति ही अवैध हुई
सच की कीमत सरहद जैसी
जहा हर पल जीवन खतरे में
दिल्ली पुलिस के साये में
अन्याय दिखा हर कतरे में,
गांधी जब मन के आँगन से
हांथो के धूल बन जायेंगे
जय भीम के नारे कहने पर
डंडे बरसाए जाएंगे
तो फिर क्यों न कहें तुम्हे जालिम हम
जिसका आदर्श जलियावाला
इस लोकतन्र्त के खम्बे का
कौन बचा है रखवाला?
मधुरेन्द्र
जब वर्दी में ही गुंडे हो,
खाकी में खड़े लफंगे हो,
कानून है इनकी जूती में,
जोर जुल्म मजबूती में,
तो कौन न्याय की ढाल बने
फिर कौन मुक्त महसूस करे
हर तरफ बेड़िया, हंटर है
जब पुलिस के हाँथ ही खंजर है,
लोकतंत्र खड़ा है कोमा में
अराजकता की सीमा में,
आजादी प्रेस की कैद हुई
अभिव्यक्ति ही अवैध हुई
सच की कीमत सरहद जैसी
जहा हर पल जीवन खतरे में
दिल्ली पुलिस के साये में
अन्याय दिखा हर कतरे में,
गांधी जब मन के आँगन से
हांथो के धूल बन जायेंगे
जय भीम के नारे कहने पर
डंडे बरसाए जाएंगे
तो फिर क्यों न कहें तुम्हे जालिम हम
जिसका आदर्श जलियावाला
इस लोकतन्र्त के खम्बे का
कौन बचा है रखवाला?
मधुरेन्द्र
