शनिवार, 1 दिसंबर 2012

कब, क्या हो, क्या पता.....

 
कब, क्या हो, क्या पता.....
सफर उदासियों का कब शुरू हो जाये, क्या पता
घटा छाये और बरस जाये ,कब, क्या पता
किसी उदास से लम्हे से उलझना मुश्किल
कब कोई लम्हा मुझे उलझाये, क्या पता।
...

दिल के किस कोने मे, परछाई का आलम है
सर पे घूप हो तो दिखाई नही देता
ढलती शाम मे आहट तेरे आने की
सुनाई दी और चांदनी मुस्कुनराने लगी।

चलो ना थाम ले लहरों में पतवार
हवाओं को भी आज आजमाते हैं
देखते हैं उनकी मर्जी भरे हिचकोले को
किनारा पास होगा या डूब जाते हैं
                                                      
मधुरेन्द्र...4 नवंबर