चुनाव के नाम पर सजी है महफिलें,
एक दूजे को गाली देने की रस्म निभानी है।
तू मेरा है मै तेरा हूं, साध रहे सब रिश्तों को,
चंद दिनों की बात है, फिर याद किसे ये आनी है।
जनता बनी है फूल , नेता भंवरों से मंडराते हैं
इठलाते , बलखाते हैं, खूब कसीदे गाते हैं
नाम वोट का ले ले कर वादों की झडी लगाते हैं
एक बार मिले जो कुर्सी फिर याद किसे ये आते हैं।
नोट वोट का गठबंधन है, खादी पर दिखता चंदन है,
दर दर दस्तक देते हैं, वोटर का होता वंदन है
चार दिनो की चांदनी जैसी, उजियारा अरमानों का है
लोकतंत्र का बना मजाक , राज यहां बेईमानों का है।
चलो वोट अपना देने मतदान केन्द्र की ओर चले,
सही उम्मदीदवार को सोचे परखे जिससे अपना हित सधे।
एक बार जो गलत चुना तो पांच साल पछताना होगा,
मौका है बदलाव का उससे बिमुख हो जाना होगा।
